नमस्कार दोस्तों मेरा नाम विमल है और मैं दिल्ली का रहने वाला हूं आज हम बात करेंगे कुतुब मीनार के बारे में की कुतुब मीनार की लंबाई कितनी है कुतुब मीनार कहां स्थित है कुतुब मीनार किसने बनवाया है| क्योंकि कुतुब मीनार से जुड़े हुए सवाल आजकल परीक्षा में भी पूछे जाते हैं तो हम आज ऐसा पड़ेंगे की कुतुब मीनार के बारे में कहीं से किसी से कुछ भी पूछा जाए तो हम उसका जवाब आसानी से दे सकते हैं | अगर आप कुतुबमीनार के बारे में जानने के लिए इच्छुक हैं तो आप हमारे साथ अंत तक बने रहे|
कुतुब मीनार की लंबाई कितनी है? Kutub Minar Ki Lambai Kitni Hai
यदि हम बात करें कुतुबमीनार की तो यह भारत की प्राचीन इमारतों में से एक है जो कि ईटों से बनी हुई है | कुतुब मीनार के स्तंभ की लंबाई 72.5 मीटर और हम फिट में देखें तो यह 237.86 फीट है इसका नीचे का व्यास 14.3 मीटर है और ऊपर का व्यास लगभग 90 फिट है कुतुब मीनार के अंदर लगभग 379 सीढ़ियां है और कुतुब मीनार के ऊपर बहुत अच्छी तरह की कलाकारी देखने को मिलती है | यह दिल्ली के सबसे व्यस्त जगहों में से एक है, यहां 12 महीने पर्यटक आते रहते हैं अगर हम इसके निर्माण की बात करें तो यह हम मार्बल ऑल लाल बलुआ पत्थरों से मनाया गया है कुतुब मीनार के आसपास और भी दीवारें और खंडहर उपस्थित है जिसे देखकर में पता चलता है कि पुराने जमाने में भी बहुत अच्छे कार्य कर थे |
कुतुब मीनार कहां स्थित है?
कुतुब मीनार दिल्ली शहर के महरौली नामक स्थान पर है | यहां पर मेट्रो ट्रेन बस आदि की व्यवस्था है अगर आप घूमने जाने के लिए सोच रहे हैं तो आप यहां पर आसानी से घूम सकते हैं|
क़ुतुब मीनार किसने बनवाया?
कुतुबमीनार बनवाने में कई शासकों का हाथ है इसका शिलान्यास 1893 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा किया गया था शिलान्यास के कुछ दिनों बाद ही उसकी मृत्यु हो गई कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी समसुद्दीन इतने कार्य को आगे बढ़ाया, इसने तीन मंजिल तक निर्माण करवाया था उसके बाद 1368 में फिरोज़ शाह तुगलक ने आगे का काम पूरा करवाया |
कुतुब मीनार के अंदर क्या है
कुतुब मीनार के पहले तल पर एक दरवाजा लगा हुआ है जो सम्मानित बंद रहता है लेकिन यह कभी–कभी खुलता है इसके अंदर जाने पर 379 सीढ़ियां है जिसके प्रत्येक दल पर बालकनी स्थित है अगर हम सबसे ऊंचे तल की बात करें तो वहां से लगभग दिल्ली का आधा हिस्सा साफ दिखाई देता है|
कुतुबमीनार का नाम कैसे पड़ा
इसके नाम के बारे में में मतभेद है कुछ इतिहासकार यह बोलते हैं कि इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था इसलिए इसका नाम कुतुबमीनार पड़ा
लेकिन कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इसका नाम ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार के नाम पर रखा गया है क्योंकि क्योंकि ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार या कुतुबुद्दीन ऐबक के परम शिष्य में से एक थे लेकिन इसमें बहुत सारे मत हैं इसलिए हम साफ नहीं कर सकते हैं कि इसका नाम किसके नाम पर पड़ा |